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खत ने तेरे

खत ने तेरे आज फिर से रुला दिया।

तुमने तो मुझे कबसे भुला दिया।


धुँध सी पड़ गई थी यादों के फिज़ा में।

एक तेरी लिखावट ने नींद उड़ा दिया।


उड़ी नहीं है अब भी गुलाब की खुशबू।

चाहत को आज फिर से क्यूँ जिला दिया।


पढ़ते हैं कोरे कागज में तहरीर इश्क की।

हिज़्र ने अब तो हर आरज़ू को मिटा दिया


कभी शाम को बैठे छत पर अकेले।

खतों को तेरे मेरे खतों से मिला दिया।।


लगाते रहे इल्जाम मसल्लस हर घड़ी।

न की कभी शिकायत न ही गिला किया।


आरज़ू लिए बैठी है 'स्नेह' आज भी विसाल की।

पर तूने  मोहब्बत का क्या खूब सिला दिया।


स्नेहलता पाण्डेय \\'स्नेह\\'

नई दिल्ली


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5 Comments

Punam verma

09-Jan-2022 09:19 AM

Very nice

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Abhinav ji

08-Jan-2022 11:51 PM

वाह बहुत बढ़िया

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Ravi Goyal

08-Jan-2022 09:17 AM

वाह बेहतरीन रचना 👌👌

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